एक बालक की जीवन यात्रा माता के गर्भाधान के साथ ही शुरु हो
जाती है। बालक के गर्भ में आना, उसका प्रारब्ध निर्धारित करता है।
चिकित्सकों के माने तो गर्भधार्ण के तृतीय माह में सूक्ष्म शरीर के रुप में बालक
गर्भ में प्रवेश करता है। अतिसूक्ष्म अवस्था में होने पर भी गर्भ में बालक की
चेतना शक्ति वयस्क के समान होती है। अनुभव में यह पाया गया है कि साधना करने से
गर्भकाल सुखमय और सुरक्षित रहता है। यह माना जाता है कि गर्भकाल में शिशु पर आने
वाली किसी भी प्रकार की परेशानियों की वजह आध्यात्मिक,
प्रारब्ध अनुसार और माता-पिता के भाग्य से होती है। माता की कुंडली में यदि अशुभ ग्रहों की दशाएं चल रही हो तो गर्भ का
गिरना, बालक का मृत जन्म लेना या बालक का पूर्ण ना होने जैसी
स्थिति सामने आ सकती है। वैग्यान के अनुसार मानव जाति में गर्भधारण के लगभग 270
दिनों के बाद एक शिशु जन्म लेता है। यह गणना मेन्सुरेशन चक्र पर
आधारित है। आमतौर पर, एक महिला को 27 दिनों
के बाद मासिक धर्म हो जाता है, इसे मासिक मासिक धर्म चक्र
कहा जाता है और एक शिशु 27 दिनों के 10 चक्रों को पूरा करने के बाद जन्म लेता है, इस प्रकार
दिनों की कुल गणना 270 दिनों की होती है, यही वास्तव में वैदिक ज्योतिष के 27 नक्षत्र है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार चंद्र एक राशि में लगभग 27 दिन
विचरण करता है। 27 नक्षत्रों में अपनी यात्रा पूरी करने के
बाद चंद्र राशि परिवर्तित करता है। हम सभी जानते है कि सामान्यत: गर्भावस्था नवमाह
की होती है। और वैदिक ज्योतिष में ग्रह भी नौ है। अध्ययन में पाया गया है कि माता
की कुंडली में गर्भावस्था के समय यदि कोई ग्रह दशा, गोचर या
गर्भावस्था से जुड़ा भाव, भावेश या कारक कमजोर स्थिति में हो
तो शिशु को उस माह गर्भ में ही दिक्कतें आनी शुरु हो जाती है। गर्भावस्था के
नवमाहों के नवग्रहों के द्वारा शासित है। गर्भ के माह के अनुसार, गर्भ में बालक की स्थिति का विचार करने के लिए अल्ड्रासाउंड या सेनोग्राफी
कराने की जगह यदि किसी योग्य ज्योतिषी से यदि माता की जन्मकुंडली का अध्ययन करा
लिया जाए, तो गर्भावस्था के माह को ध्यान में रखते हुए,
संबंधित ग्रह की स्थिति को समझते हुए उसका यथासंभव उपाय कर ग्रह को
बेहतर किया जा सकता है। खास बात यह है कि गर्भ में शिशु की स्थिति को जानने और उसे
सुरक्षा देने की यह विधि सरल, सहज और अलट्रावाय़लेट किरणों का
प्रयोग न होने के कारण किसी भी प्रकार के साईड इफेक्ट से मुक्त भी है।
प्रथम माह
गर्भ का प्रथम माह शुक्र द्वारा शासित होता है। इस माह में
गर्भाधान से पहले महीने के दौरान वीर्य मिश्रण तरल रूप में रहता है इसलिए शुक्र को
इस महीने का स्वामी कहा जाता है। यह प्रक्रिया जीवन के जन्म के उद्देश्य के लिए
होती है। शुक्र ग्रह वीर्य का कारक ग्रह है। इस एक माह की अवधि में फ़एक गर्भवती
महिला को शुक्र ग्रह की पूजा करनी चाहिए। इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना
चाहिए कि शुक्र ग्रह गोचर में यदि अशुभ ग्रहों के प्रभाव में आता है तो उसका उपाय
समय से पूर्व कर लेना चाहिए। इसके लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं-
घर का पूजास्थल साफ-सुथरा रखना चाहिए और पूजन वस्तुएं सही
रुप में रखी जानी चाहिए।
द्वितीय माह
गर्भावस्था का द्वितीय माह मंगल ग्रह द्वारा शासित होता है।
इस माह में भूर्ण तरल से ठोस रुप ले लेता है, इसलिए इस माह का स्वामी ग्रह मंगल है। मंगल
ग्रह को पृथ्वी का पुत्र माना जाता है, इसलिए पृथ्वी तत्व के
रूप में, मंगल केवल गर्भ में तरल बुलबुले के नश्वर रूप में
परिवर्तित होने का कारण है। इस माह में तरल पदार्थ जम जाता है, तो गर्भ में मांस उत्पन्न होने लगता है। मंगल मांस, ठोस
अवस्था आदि का कारक है, इसलिए इस माह के दौरान तरल अवस्था
में यह मिश्रण एक ऐसे नश्वर का आकार लेना शुरू कर देता है जिसमें कठोरता का आभास
होना शुरु हो जाता है। यदि मंगल ग्रह गोचर में खराब स्थिति में है या महिला की
कुंडली में अशुभ भावों में वक्री या पीड़ित अवस्था में है तो महिला के लिए गर्भ
संबंधी समस्या उत्पन्न होने लगती है। इस माह में पति पत्नी दोनों का मंगल ग्रह की
पूजा करना फायदेमंद साबित होता है। मंगल को शुभ करने के लिए निम्न उपाय करें-
हनुमान जी की उपासना करें।
तृतीय माह
तृतीय माह पर बृहस्पति ग्रह का शासन है। इस माह में भूर्ण
के अंग बनते हैं। हाथ और पैर, कान, पैर की उंगलियाँ
और अंगुलियाँ आदि शरीर के अंगों के निर्माण के लिए विकसित होने लगते हैं। इस महीने
के दौरान भ्रूण का लिंग भी निर्धारित होने लगता है। इस माह के स्वामी बृहस्पति
ग्रह हैं, उस नश्वर भ्रूण में जीव अंश अब शुरू होता है। इस
माह में महिला को जीव प्रदान करने के लिए बृहस्पति ग्रह को धन्यवाद कहना चाहिए।
क्योंकि बृहस्पति ग्रह समृद्धि और वृद्धि का कारक ग्रह है और इसे जीवन दाता कहा
जाता है। शरीर के अंगों का विकास और गर्भ भ्रूण में गतिविधि तीसरे महीने में शुरू होती है। तीसरे महीने के
दौरान भगवान बृहस्पति की पूजा लाभदायक है। यदि स्त्री की कुंडली में बृहस्पति खराब
स्थिति में है तो इस महीने के दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए और यदि बृहस्पति
मार्गी, या अशुभ भावों में स्थित हैं तो समस्याएं सामने आ
सकती है। शरीर में जिव्हा के प्रवेश से ठीक पहले इस महीने में गर्भपात होने की
संभावनाएं बढ़ जाती है, इसलिए इस माह में विशेष सावधानी रखने
के सलाह चिकित्सक देते है। यदि किसी कारणवश गर्भपात कराना हो या कराना पड़े तो इस
माह में यह निर्णय ले लेना चाहिए। गर्भपात की घटनाएं प्रथम 12 हफ्तों में ही देखने में आती है।
उपाय- हल्दी और केसर का खाने में प्रयोग करें और चंदन का तिलक
करना चाहिए।
चतुर्थ माह
गर्भावस्था के चौथे माह का स्वामी ग्रह सूर्य है।
गर्भावस्था के चौथे महीने के दौरान शरीर में हड्डी का निर्माण शुरू हो जाता है।
हड्डियां ताकत और मानव शरीर की संरचना का प्रतीक हैं। सूर्य देव इस माह के स्वामी
हैं और सूर्य हड्डियों के कारक ग्रह हैं। इस माह में यदि महिला की कुंडली में
सूर्य खराब स्थिति में है तो समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यदि इस महीने के दौरान
सूर्य गोचर में अशुभ स्थिति में है (या तो राहु या केतु के साथ युति में है,
सूर्य ग्रहण हो तो भ्रूण के लिए समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इस अवधि
के दौरान महिला को अशुभ प्रभाव से बचने के लिए सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए।
उपाय-
गायत्री मंत्र का जाप करें। उगते सूर्य के सम्मुख बैठें।
पंचम माह
पांचवा महीना
चंद्रमा द्वारा शासित होता है। पांचवें महीने में गर्भ में पल रहे भ्रूण में रक्त
बनने लगता है। रक्त एक तरल रूप है, शरीर में सभी प्रकार के तरल पदार्थों का
कारक ग्रह चंद्रमा है। इसलिए इस माह का स्वामी चंद्र ग्रह है। चंद्रमा मन का भी
कारक ग्रह है, भावनाओं को भी चंद्र ग्रह ही नियंत्रित करता
है। शरीर में रक्त का संचरण चंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है। इस महीने में
रक्त, नसें, त्वचा आदि बनती हैं। यदि
चंद्रमा खराब स्थिति में है, दुर्बल हैं, तो गर्भ और महिला को समस्याएं आती है। इसके अतिरिक्त इस माह में चंद्र
ग्रहण हो या चंद्र अशुभ ग्रहों के कारण पीडित हो रहा हो तो भूर्ण को समस्याएं आती
है। इस माह में महिला का चंद्र देव का पूजन करना लाभकारी रहता है।
उपाय- चांदी के बर्तन में पानी पीयें।
षष्ठ माह
गर्भ का षष्ठ माह शनि ग्रह के स्वामित्व में आता है। इस माह
में मुख्य रुप से शिशु के बालों का विकास होता है। इसके साथ ही छठे महीने के दौरान, बच्चे
में नाखून और बाल विकसित होने लगते हैं।
नाखून, बाल, आदि विषयों के
स्वामी शनि हैं, शरीर के इन अंगों के पास कोई भी जीवन नहीं
होता है, इसलिए वे बेजान होते हैं। इन सतही अंगों का उचित
विकास बच्चे ग्रह के द्वारा होता है। इसलिए यदि शनि वक्री अवस्था में गोचर कर रहा
है, कमजोर है या खराब स्थिति में है तो इस माह में गर्भ में
बच्चे को समस्या हो सकती है। इस महीने के दौरान भगवान शनि की पूजा करना बेहद
फायदेमंद रहता है।
उपाय - लौहतत्व से युक्त भोजन करें। स्नान के जल में बेलपत्र
डालकर स्नान करें।
सप्तम माह
गर्भ के सातवें माह पर बुध का शासन होता है। इस माह में
तंत्रिका तंत्र विकसित करता है। सातवें महीने में, बुद्धि भ्रूण में प्रवेश
करती है, इस महीने में भूर्ण में जागरूकता आती है और आराम और
दर्द की भावनाओं का भी उसे अनुभव होता है। और इस महीने में त्वचा की वसा भी विकसित
होती है जो कि त्वचा का पूर्ण गठन करती है क्योंकि त्वचा का कारक ग्रह बुध है
इसलिए बुध इस माह का स्वामी है और उसे बुद्धि का कर्ता भी माना जाता है। यह बुद्धि
के प्रवेश को सक्षम बनाता है और जागरूकता पैदा करता है जिसके द्वारा जीव बुद्धि और
ज्ञान के लिए सक्रिय हो जाता है। यदि महिला की कुंडली में बुध पीड़ित है तो इस
महीने में समस्याएं संभव हैं।
उपाय-ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें।
अष्टम माह
गर्भ के आठ माह का स्वामी महिला के ईष्ट देव होते है।
घर-परिवार में जिस भी देव का पूजन होता है उस देव के आशीर्वाद से इस माह के गर्भ
की रक्षा होती है। ईष्ट देव इस माह बच्चे को भोजन की आपूर्ति करता है। महिला की
जन्मपत्री में जो भी ग्रह लग्नेश हो, उसे भी एक अन्य मत से इस माह के गर्भ का
स्वामी माना जाता है। इस माह में यदि बच्चा लड़का है, तो
उसके वृषण अंडकोश में नीचे चले जाएंगे। इस महीने की शुभता जन्म लग्नेश की स्थिति
से तय होती है। यदि इस महीने के दौरान एक महिला किसी के साथ कुछ गलत व्यवहार करती
है या देवताओं का अनादर करती है तो बच्चे को बहुत सारी समस्याएं आती हैं। इसलिए,
एक गर्भवती महिला को इस माह लग्नेश की पूजा और पूर्ण आराम करना
चाहिए। नित्य लग्न स्वामी से गर्भ रक्षा के लिए प्रार्थना करना लाभदायक रहता है।
उपाय - अपने कुल देव का नित्य पूजन करें।
नवम माह
चंद्रमा द्वारा शासित नौवें महीने को उदवेगा कहा जाता है जिसका अर्थ है उत्तेजित होना। भ्रूण पूरी तरह कार्यात्मक होता है और इस समय गर्भ अत्यधिक तेजी से बढ़ रहा होता है। माँ को इसका अनुभव पेट पर किक मार्ने और स्ट्रेच के रूप में देखा जाता है। इस माह में गर्भ छोड़ने के लिए भ्रूण तत्पर दिखाई देता है। हालांकि इस महीने के अंत तक भ्रूण इतना बड़ा हो जाता है कि उसके पास स्थानांतरित होने के लिए कोई जगह नहीं होती है। इस माह में भ्रूण को प्यास और भूख बहुत अधिक
लगती है। जिससे महिला की भूख अत्यधिक बढ़ जाती है। नवें माह से लेकर जन्म होने तक
एक बार फिर से इस समय का कारक ग्रह चंद्र ग्रह होता है। इस समय में बच्चे का दिमाग
सक्रिय हो जाता है और वह प्रसव के लिए तैयार हो जाता है।
उपाय - नवम माह में
चंद्र देव का पूजन करें। पूजन के साथ इन ग्रहों का मंत्र जाप करना भी उत्तम रहता
है।
सभी माह में गर्भ की रक्षा और उत्तम विकास के लिए महिला को
मधुर, कर्णप्रिय और धार्मिक मंत्रों का जाप सुनना चाहिए। संगीत की
अद्भुत शक्ति महिला और भूर्ण दोनों के लिए उपयोगी साबित होती है।

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